रणभूमि अध्याय 04 - कौरव सेना में हाहाकार

रणभूमि अध्याय 04 - कौरव सेना में हाहाकार

रणभूमि अध्याय 04 - कौरव सेना में हाहाकार

नमस्कार साथियों, मैं आपका सूत्रधार अनुज, रणभूमि कुरुक्षेत्र के इस पॉडकास्ट में आपका स्वागत करता हूँ। हम तीन दिवसों का महाभारत युद्ध देख चुके हैं तो अब बिना किसी विलम्ब के चौथे दिन की ओर बढ़ते हैं।

पाप यदि ना बढ़ता, तो ये युद्ध कदाचित ना होता,
धर्मराज भी स्वयं कभी, अपने संयम को ना खोता।
इक नारी के खुले केश, क्या स्वयं तुम्हें भी याद नहीं?
माधव के मैत्री संदेशे की कोई औकात नहीं।।
 
अधर्म विरोधी भरी सभा में कोई तो बोला होता,
तलवारें सजी मयानो में, अरे खून कभी खौला होता।
द्युत युद्ध में हुए कपट का, बोलो बदला लेगा कौन?
वीर समय पर ना बोले, तो तुम भी अब हो जाओ मौन।।
संकट के सागर में दिखता युद्ध शेष, अब एक ही तट है।
पर पार्थ, रहो निश्चिन्त अब अँधियारे का अपमान निकट है।।

राहुल शर्मा ने महाभारत युद्ध के कारण और उससे उमड़े पाण्डवों के क्रोध को भली प्रकार से बताया है। अब तक केवल एक दिन अपना पलड़ा भारी रख पाए कौरवों को लगातार दो दिनों तक मुँह की खानी पड़ी थी। दुर्योधन प्रतिशोध की अग्नि में जल रहा था। चौथे दिन के लिए कौरव सेना व्याल व्यूह के साथ उतरी। पाण्डव सेना पुनः वज्र व्यूह के साथ उतरी। युद्ध में सेनापतियों के शंखनाद के साथ ही रणभेरियाँ बज उठीं। सभी वीर सिंह की भाँति गर्जना करते हुए अपने धनुष की टंकार छोड़ने लगे।

युद्ध शुरू हुआ, पुनः वही नरसंहार शुरू हो गया। दोनों पक्षों की सेना धराशाई होने लगी। आज के दिन भीष्म ने युद्ध की शुरुआत ही अर्जुन पर आक्रमण करने से की। भीष्म के सहयोगियों ने अर्जुन पर धावा बोल दिया लेकिन सुभद्राकुमार अभिमन्यु ने उनसे ख़ूब लोहा लिया। अश्वत्थामा, भूरिश्रवा, शल्य, चित्रसेन और शल के पुत्र ने अभिमन्यु को आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश की परन्तु अभिमन्यु किसी शावक की भाँति हाथियों के झुण्ड में घुसता चला जा रहा था। कौरव सेना के पाँच योद्धा मिलकर भी अभिमन्यु को अकेले नहीं रोक पाए रहे थे।

एक ओर धृष्टद्युम्न भी कौरव सेना को बहुत अधिक क्षति पहुँचा रहा था। धृष्टद्युम्न ने शल के पुत्र को भी मार गिराया। ये देखकर शल अत्यन्त कुपित होकर धृष्टद्युम्न की ओर दौड़ा। उसने बुरी तरह धृष्टद्युम्न को घायल कर दिया। जिसके बाद अभिमन्यु धृष्टद्युम्न की सहायता हेतु आगे आया।

दूसरी ओर भीमसेन, दुर्योधन की ओर गदा लेकर भागा। वह इस युद्ध को समाप्त करना चाहता था। कैलाश पर्वत की भाँति विशालकाय भीमसेन को अपनी ओर आता देखकर धृतराष्ट्र के शेष सभी पुत्र डर के मारे भाग गए।

दुर्योधन ने मगध की गजसेना को आगे बढ़ाया। भीमसेन अपनी गदा से शत्रु की गजसेना का संहार करने लगा। भीमसेन की सहायता हेतु कई योद्धा वहाँ और आ गए। इतनी अधिक गजसेना की क्षति हो रही थी कि पूरी युद्धभूमि में केवल हाथियों की दर्दभरी चीखें सुनाई दे रही थीं। भीमसेन ने हाथ में गदा लेकर समरभूमि में ताण्डव मचा दिया। भीमसेन की गदा में रक्त, केश, मांस और चमड़ी चिपक गई थी। ये हाहाकार देखकर दुर्योधन ने समस्त सेना को भीमसेन का वध करने का आदेश दिया। फिर भी भीमसेन रुकने का नाम नहीं ले रहा था। इसके बाद दुर्योधन ने भीमसेन के धनुष को काट दिया। भीमसेन ने भी इसके उत्तर में दुर्योधन का धनुष तहस-नहस कर दिया। इससे क्रोध में आकर दुर्योधन ने भीमसेन की छाती में एक भयंकर तीर मारा जिससे उसे मूर्च्छा आ गई। यह देखकर अभिमन्यु तुरन्त ही भीमसेन की सहायता के लिए आगे आया और दुर्योधन पर बाणों की वर्षा कर दी।

वृष्णिवंशी सात्यकि और भूरिश्रवा का भीषण युद्ध छिड़ा था। दोनों योद्धा कई-कई बाणों से एक-दूसरे को घायल कर रहे थे। वहीं भीमसेन ने धृतराष्ट्र के 14 पुत्रों को यमलोक की यात्रा करवा दी।

इसके फलस्वरूप भीष्म ने पूरी सेना को भीमसेन के पीछे भेज दिया। भगदत्त ने अपने हाथी पर सवार होकर भीमसेन पर धावा बोला और भीमसेन की छाती में एक बाण मारकर उसे मूर्छित कर दिया। यह देखकर घटोत्कच क्रोध में अदृश्य हुआ और भयंकर रूप लेकर पुनः श्वेत हाथी पर बैठकर प्रकट हो गया। वह तुरन्त अपना हाथी लेकर भगदत्त की ओर दौड़ा।

घटोत्कच को अत्यधिक क्रोध में देखकर भीष्म ने कई योद्धाओं के साथ भगदत्त का रुख किया। परन्तु घटोत्कच के क्रोध के आगे किसी की भी एक नहीं चलने वाली थी। अतः भीष्म ने पीछे हटकर युद्ध विराम की घोषणा कर दी।

यह देखकर पाण्डव सेना में उत्सव का वातावरण हो गया जबकि कौरव सैनिक लज्जित होकर अपने शिविर वापस लौट गए।

 

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