रणभूमि अध्याय 05 - नरसंहार

रणभूमि अध्याय 05 - नरसंहार

रणभूमि अध्याय 05 - नरसंहार

साथियों एक बार फिर से मैं आपका सूत्रधार अनुज महाभारत युद्ध के पाँचवें दिन का लेखा-जोखा लेकर आपके बीच उपस्थित हूँ। अभी तक के युद्ध में मुख्य रूप से पाण्डव पक्ष ही प्रबल रहा है। चलिए जानते हैं कि पाँचवें दिन पाँसा किसके पक्ष में गिरता है।

पितामह के बाड़ों से पूरा भूमण्डल डोल उठा।
हर एक वीर ही महा समर में हर-हर बम-बम बोल उठा।
तलवारों के टकराने से ध्वनि गूँजती थी टन-टन।
बाढ़ हवा के सीने पर दस्तक देते थे सनन-सनन।
सनन सनन से और भयानक हो उठती थी मंद पवन।
कवच और कुण्डल वीरों के बज उठते थे खनन खनन।
मस्तक पर अंकुश टकराने से करते थे गर्जन।
घायल असुरों की चीखें भी गूँज रही थी हिंनन हिंनन।
भाले चलते ऐसे जैसे बिजली चलती कड़क कड़क।
काट रहे थे वीर समर में सर को जैसे भड़क भड़क।
घनन-घनन घनघोर घटा गिरती जाती थी छन छन में। 
बाढ़ कमान कृपाण गदा से रक्त बहा था कण-कण में। 
उद्दण्ड चन्दनी चण्डी माँ के चरणों में नरमुण्ड चढ़े।
बजा रहे थे घनन-घनन यमराज नगाड़े खड़े-खड़े।
इस भीषण रण से ज्वाला की बढ़ती जाती थी भड़कन।
पितामह के लोहित लोचन देख बड़ी दिल की धड़कन।

प्रवीण शुक्ला ने इस कविता में भीष्म के पराक्रम और महाभारत के युद्ध को बहुत ही सुन्दर ढंग से दर्शाया है। चौथे दिन शिविर में पहुँचते ही दुर्योधन ने भीष्म से पाण्डवों के प्रबल पक्ष के पीछे की वजह जाननी चाही। तब भीष्म ने नर और नारायण की उत्पत्ति की कथा दुर्योधन को सुनाई। इसके साथ ही भीष्म ने वचन दिया कि पाँचवें दिन का युद्ध कौरवों के पक्ष में प्रबल साबित होगा। दूसरी ओर श्रीकृष्ण ने भी सेना में ऊर्जा का संचार बनाने के लिए सभी को उपदेश दिया।

युद्धभूमि वीरों का रक्त पीने के लिए एक बार फिर से प्यासी खड़ी थी। दोनों सेनाएँ अपने-अपने सेनापतियों के निर्देशों का पालन करने को तत्पर थीं। युद्ध के पाँचवें दिन रणनीति में बदलाव करने का समय आ चुका था। अभी तक प्रयुक्त व्यूह रचनाओं को दोनों पक्ष भली प्रकार से समझ चुके थे।

भीष्म ने पाँचवें दिन के लिए मकरव्यूह का चयन किया तो पाण्डवों ने श्येन व्यूह से उत्तर देने की ठानी। मकर अर्थात मगरमच्छ के आकार में पूरी कौरव सेना भीष्म के नेतृत्व में तैयार थी, वहीं श्येन अर्थात बाज के आकर में युधिष्ठिर ने अपनी सेना को तैनात कर दिया था।

युद्ध शुरू होते ही भीमसेन और अर्जुन, भीष्म से जाकर भिड़े। तब दुर्योधन ने द्रोणाचार्य से पाण्डव सेना के संहार की कामना जताई। द्रोणाचार्य ने दुर्योधन को आश्वासन दिया और सात्यकि के संरक्षण के बाद भी पाण्डव सेना को क्षति पहुँचाने लगे। सात्यकि ने द्रोण का मार्ग रोककर उनसे युद्ध आरम्भ कर दिया। द्रोण ने सात्यकि के गले पर हमला किया। तब भीमसेन ने सात्यकि की रक्षा की। 

लेकिन इस बात से शल्य, भीष्म और द्रोण तीनों के क्रोध का सामना भीमसेन को करना पड़ा और तीनों योद्धाओं ने अपने तीरों से भीमसेन को ढँक दिया। इसका उत्तर अभिमन्यु और द्रौपदी के पाँचों पुत्रों ने दिया। शिखण्डी ने उसी समय द्रोण और भीष्म का सामना करने की ठानी और इतने बाणों की वर्षा की कि सूर्य भी ढँक गया।

शिखण्डी को सामने देखकर भीष्म ने युद्ध बन्द कर दिया और द्रोण, तुरन्त ही भीष्म की रक्षा के लिए आगे बढ़े। द्रोण के सामने आते ही शिखण्डी भयभीत होकर युद्ध छोड़कर चला गया।

कौरव सेना की ओर से चिंघाड़ते हुए हाथियों, हिनहिनाते हुए घोड़ों और शंखों की ध्वनि से पूरा आकाश गूँज उठा। दोनों पक्षों से तीरों के चलाए जाने से मस्तक कटकर ऐसे गिरने लगे मानो मस्तकों की वर्षा हो रही हो। दोनों ही पक्षों के सैनिक पूरे उत्साह से लड़ रहे थे। भारी संख्या में दोनों ओर के सैनिकों का वध हो रहा था।

धूल के बादल चारों ओर छा रहे थे लेकिन अस्त्रों-शस्त्रों का प्रकाश धूल के पार भी दिखाई दे रहा था। चारों ओर युद्ध पशुओं और धनुष की टंकारों की ध्वनि के अलावा कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। शत्रुओं का वध करने के लिए योद्धा समरभूमि में दौड़ लगा रहे थे। कुछ युद्ध पशु अपने सवार के मारे जाने पर युद्धभूमि में यहाँ-वहाँ भाग रहे थे। 

इसी बीच गाण्डीवधारी अर्जुन, भीष्म की ओर बढ़ा। गाण्डीव का गर्जन सुनकर कौरव सैनिक पथभ्रष्ट हो गए और यहाँ-वहाँ भागने लगे।

अवन्तिनरेश, काशीराज के साथ, जयद्रथ, भीमसेन के साथ, युधिष्ठिर, शल्य के साथ, विकर्ण, सहदेव के साथ और चित्रसेन, शिखण्डी के साथ, द्रुपद, चेकितान और सात्यकि, द्रोण तथा अश्वत्थामा से भिड़ गए।

ऐसा भीषण युद्ध छिड़ा कि बादलों के बिना ही बिजलियाँ चमकने लगीं। बाण उल्काओं की तरह धरती पर गिरने लगे। ज़ोरों की आँधी चलने लगी। 

भीष्म ने भयंकर हाहाकार मचा रहे भीमसेन पर तीखे बाण मारकर उसे घायल कर दिया। ये देखकर सात्यकि भीमसेन की रक्षा के लिए आगे बढ़ा लेकिन भीष्म ने उसके सारथी को मार दिया

इसके उत्तर में पाण्डव सेना के कई वीर भीष्म से युद्ध करने आगे आए।

दूसरी ओर अश्वत्थामा और अर्जुन के मध्य घमासान युद्ध हुआ। अश्वत्थामा ने श्रीकृष्ण को घायल कर दिया जिससे क्रोधित होकर अर्जुन ने अश्वत्थामा का कवच बींध डाला। लेकिन अपने गुरु का पुत्र होने के कारण अर्जुन ने अश्वत्थामा को युद्ध क्षेत्र में छोड़ दिया।

अभिमन्यु ने धृतराष्ट्र के पौत्र लक्ष्मण को बुरी तरह घायल कर दिया और उसके सारथी को भी मार दिया। कृपाचार्य ने आगे बढ़कर लक्ष्मण को अपने रथ में बिठाया और वहाँ से ले गए।

सात्यकि के दसों पुत्रों ने एक-एक करके भूरिश्रवा पर हमला किया और अन्ततः वीरगति को प्राप्त हुए। ये देखकर सात्यकि अत्यन्त क्रोधित होकर भूरिश्रवा से भिड़ गया। परन्तु सात्यकि भी भूरिश्रवा के हमले नहीं झेल पाया और कुछ ही समय में रथविहीन हो गया। भीमसेन ने समय रहते सात्यकि को अपने रथ पर बिठा लिया।

इसी के साथ युद्ध विराम की घोषणा हो गई और दोनों सेनाएँ क्षत-विक्षत हालत में अपने-अपने शिविर लौट गईं। इस दिन के युद्ध में दोनों ही पक्ष ने डट कर एक-दूसरे का सामना किया था। कोई भी पक्ष प्रबल नहीं रहा।

प्रवीण शुक्ला की क़लम से... 

रक्त पिपासु काली मैया खप्पर भरती जाती थी।
पितामह से पूरी पाण्डव सेना डरती जाती थी।
उनके आगे जो भी आया वध उसका तत्काल हुआ।
उसी वीर की श्रोणित धारा से तल भू का लाल हुआ।
इतना रक्त पिया धरती ने और नहीं पी पाती थी।
बहे लहू की धारा अब नदिया बन बहती जाती थी।

साथियों तो कुछ इस तरह महाभारत युद्ध का पाँचवाँ दिन समाप्त हुआ।

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