जनमेजय का नागयज्ञ पर कविता
जनमेजय का नागयज्ञ पर यह कविता हमारी लेखक मण्डली के अनुज उपाध्याय द्वारा
तय नियति है तो होनी होगी वही,
बँध गए इसमें तो शेष परिणाम है।
इक कुरु वंश था, जिसमें कुछ ना बचा
तब परिक्षित ही निर्जन का राजा बना।
फिर अहं चढ़ गया, काल ने यूं डंसा
वो अहं आखिरी में ही बाधा बना॥
माता ने दिया भस्म होने का शाप,
इस कथा के भी कितने आयाम हैं।
तय नियति है तो होनी होगी वही,
बँध गए इसमें तो शेष परिणाम है॥
जनमेजय, भ्रातृ संग मूक हिंसा किए,
सरमा शाप असम्भव की पाटी बना।
सोमश्रवा बन पुरोहित चले तो गए,
शर्त मानी गई, यज्ञ माटी बना।।
और उत्तंक भी नागों के लोक गए,
मन में सोचा था ये बस व्यायाम है।
तय नियति है तो होनी होगी वही,
बँध गए इसमें तो शेष परिणाम है।।
वासुकी भी हुए चिंतामग्न तभी,
और आस्तीक को उनका लक्ष्य मिला।
जनमेजय ने कहा माँगो वर भी कोई,
यह सुना ही ज्यों मन का फूल खिला।।
रुक गई नियति, मार्ग बदला गया,
सिर्फ़ कर्मों का ही तो ये अंजाम है।
तय नियति है तो होनी होगी वही,
बँध गए इसमें तो शेष परिणाम है।।
जनमेजय का नागयज्ञ पर सूत्रधार की शृंखला देखने के लिये डाउनलोड कीजिये हमारा मोबाईल एप्प।