रणभूमि अध्याय 03 - श्रीकृष्ण का क्रोध
रणभूमि अध्याय 03 - श्रीकृष्ण का क्रोध
नमस्कार, मैं आपका सूत्रधार अनुज रणभूमि के तीसरे दिन के युद्ध के इस पॉडकास्ट में आपका स्वागत करता हूँ। पिछले दो दिनों के युद्ध में एक दिन कौरव पक्ष और दूसरे दिन पाण्डव पक्ष प्रबल रहा। तो चलिए तीसरे दिन के युद्ध का लेखा-जोखा शुरू करते हैं।
राहुल शर्मा ने इन पंक्तियों में महाभारत युद्ध का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है। दूसरे दिन के युद्ध की रात घायल योद्धाओं के उपचार में और उनकी वेदना के नाद में बीत गई। तीसरे दिन की शुरुआत में सूर्योदय होते ही कौरव पक्ष के सेनापति भीष्म ने पाण्डव सेना के विरुद्ध अपनी सेना को गरुड़ व्यूह में तैनात किया। भीष्म स्वयं चोंच के स्थान पर खड़े हुए। द्रोण और कृतवर्मा नेत्रों के स्थान पर, अश्वत्थामा और कृपाचार्य, त्रिगर्त, केकय और वाटधान के साथ सिर के स्थान पर, जयद्रथ के साथ भूरिश्रवा, शल, शल्य और भगदत्त, मद्र, सिन्धु, सौवीर तथा पंचनद सेना के साथ गर्दन के स्थान पर, अपने भाइयों और अन्य सहयोगी राजाओं के साथ दुर्योधन पीठ के हिस्से में, अवन्ति के विन्द और अनुविन्द के साथ शक, कम्बोज और शूरसेन देश की सेनाएँ पूँछ के हिस्से में, मगध, कलिंग और दासेरक दाएँ पंख के स्थान पर, कारूष, विकुंज, मुण्ड और कुण्डिवृष जैसे योद्धा बृहदबल के साथ बाएँ पंख के स्थान पर खड़े हुए।
इसके उत्तर में अर्जुन ने धृष्टद्युम्न को साथ लेकर पांडवों की ओर से अर्धचन्द्र जैसी सैन्य व्यूह रचना बनाई।
कौरवों की ओर से दुर्योधन तथा पांडवों की ओर से भीम व अर्जुन अपने-अपने व्यूहों की सुरक्षा कर रहे थे।
तीसरे दिन का युद्ध आरम्भ हो चुका था। दोनों सेनाएँ चिंघाड़ते हुए एक-दूसरे पर प्रहार करने लगीं जिसकी ध्वनि आकाश में गूँजने लगी। कुन्तीपुत्र अर्जुन अपने बाणों द्वारा कई-कई सैनिकों को यमलोक पहुँचाने लगे। सैनिक घायल होकर दूर भागते और फिर पुनः लौटकर युद्ध में लग जाते।
इस भीषण युद्ध में इतनी धूल छा गई कि सैनिकों को दिशा का ज्ञान होना ही बन्द हो गया। वे तितर-बितर होकर बस दौड़ लगा रहे थे। घुड़सवार और हाथी आपस में भिड़कर एक-दूसरे को धराशायी कर रहे थे। कई योद्धा हाथियों पर चढ़कर विपक्षी योद्धाओं के सिर को केशों से पकड़कर उन्हें धड़ से अलग कर रहे थे। कई योद्धा हाथियों के दाँतों से घायल होकर गहरी साँसें ले रहे थे।
चारों ओर अस्त्र, शस्त्र, ध्वज, रथ, पशु, योद्धा के अवशेष बिछ गए थे। मांस और रक्त की कीचड़ भूमि पर पसर गई थी। इतना रक्त हवा में उछला कि सारी धूल नीचे बैठ गई।
भीमसेन, घटोत्कच, सात्यकि, चेकितान और द्रौपदी के पाँचों पुत्र मिलकर विपक्षी सेना को उसी तरह खदेड़ रहे थे जैसे देवताओं ने दैत्यों को खदेड़ा था।
दुर्योधन ने इस हमले का प्रतिउत्तर दिया लेकिन भीमसेन ने एक बाण से उसकी छाती को बींध दिया। दुर्योधन रथ पर बैठ गया और उसे मूर्च्छा आने लगी। उसका सारथी तुरन्त ही उसे रणभूमि से बाहर ले जाने लगा। ये देखकर कौरव सेना में भगदड़ मच गई। युद्ध में भीम अकेले ही सैकड़ों कौरव सैनिकों को मार गिराया।
कुछ क्षणों के बार दुर्योधन की मूर्च्छा दूर हो गई और उसने सेनाओं को वापस लौटाया। दुर्योधन की जहाँ तक दृष्टि जाती वहाँ उसके सैनिक मृत या अचेत अवस्था में पड़े हुए थे। यह देखकर दुर्योधन कौरव सेनापति भीष्म के पास गया और उनसे प्रतिउत्तर देने की इच्छा जताने लगा।
यह सुनकर भीष्म अकेले ही पाण्डव सेना का दमन करने का निश्चय किया और भीषण संहार मचा दिया।
सन्ध्या का समय निकट आ चुका था, पाण्डव सैनिक तीसरे दिन की विजय का महोत्सव मनाने तैयार थे लेकिन तभी भीष्म उनका काल बनकर उन पर टूट पड़े। उन्होंने ऐसा नरसंहार किया कि युद्धभूमि में रक्त की नदी बहने लगी। भीष्म कई सहस्त्र बाणों की वर्षा करके पाण्डव सेना को मृत्यु से साक्षात्कार करवा रहे थे। भीष्म इतने वेग से हमला कर रहे थे कि सभी दिशाओं में बस वो ही दिखाई दे रहे थे।
पाण्डव सेना में महोत्सव की जगह हाहाकार मच गया था। चारों ओर भगदड़ मची थी। यह देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भीष्म का वध करने को कहा।
अर्जुन ने तुरन्त ही भीष्म से लोहा लिया। भीष्म ने अर्जुन के रथ के घोड़ों को बींध दिया लेकिन श्रीकृष्ण तब भी रथ हाँकते रहे। श्रीकृष्ण अपनी सारथी की कला का उत्तम परिचय दे रहे थे। लेकिन भीष्म रुकने वालों में से नहीं थे। उन्होंने श्रीकृष्ण और अर्जुन को भी बींध दिया।
अर्जुन बहुत ही कोमल ढंग से भीष्म से युद्ध कर रहा था इसी कारण श्रीकृष्ण को स्वयं इस युद्ध में उतरने का विचार आया। श्रीकृष्ण ने तुरन्त ही सुदर्शन चक्र का स्मरण किया जिससे उनके हाथ के अग्रभाग में सुदर्शन दिखने लगा। श्रीकृष्ण भीष्म का वध करके अपने क्रोध में समस्त कौरव सेना को भस्म करने के लिए तैयार थे। श्रीकृष्ण तुरन्त अर्जुन का रथ छोड़कर रणभूमि में उतरे और सुदर्शन लेकर भीष्म की ओर भागे। स्वयं जगत के पालनहार को अपने वध के लिए आता देखकर भीष्म अपनी मृत्यु और श्रीकृष्ण दोनों का स्वागत करते हुए हाथ जोड़कर खड़े हो गए। अर्जुन तुरन्त ही श्रीकृष्ण के पीछे दौड़े और उन्हें चरणों से पकड़कर उन्हें रोक लिया। अर्जुन ने पुनः पूरे समर्पण से युद्ध करने का निश्चय किया और युद्धभूमि में फिर से हाहाकार मचाने लगे।
अर्जुन ने माहेन्द्र अस्त्र का सन्धान किया और अग्नि की तरह जलते बाणों का जाल बिछाकर कौरव सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया। उस महान ऐन्द्रास्त्र से कई-कई सैनिक मारे गए। अर्जुन किसी सिंह की भाँति अपने शिकार पर टूट पड़ा था। सूर्यास्त हो जाने पर भी अर्जुन के बाणों की अग्नि से समरभूमि में उजाला व्याप्त रहा। सन्ध्या होते ही दुर्योधन ने अपनी सेना को वापस लौटा लिया। और पाण्डव सेना भी अपने शिविर में वापस लौट गई।
अर्जुन ने एक दिन में ही समस्त प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव क्षत्रियगणों को मार गिराया। युद्ध के तीसरे दिन पाण्डव सेना के सामने कौरवों की एक न चली।
राहुल शर्मा की क़लम से